यश-स्टारर केजीए का ट्रेलर रिलीज किया जा चुका है इस फिल्म का दूसरा चैप्टर भी 14 अप्रैल को रिलीज के लिए एक दम तैयार ही है। केजीएफ: चैप्टर 1 को बहुत ही ज्यादा सफलता मिली थी और इसी वजह से इसके सीक्वल आने की भी काफी ज्यादा उम्मीदें जताई जा रही हैं। इस फिल्म की कहानी का मुख्य प्लॉट सोने की खान की कहानी से जुड़ा हुए है जहां पर मजदूरों का बहुत ही ज्यादा शोषण होता हे।
खैर अभी तक तो यही कयास लगाए जा थे कि फिल्म पूरी तरह कल्पना मात्र है लेकिन अब इससे जुड़ी काफी सारी रिपोर्ट सबके सामने आ रही है वैसे अभी तक कोई भी न्यूज एजेंसी इस तथ्य की पुष्टि नहीं कर पाई है की क्या सच में कुछ भी फिल्म KGF का कोलार गोल्ड फील्ड्स से कुछ भी जुड़ाव है की। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार फिल्म वास्तविक जीवन की घटनाओं से काफी ज्यादा प्रेरित बताई गई है। बताया जा रहा है कि इस फिल्म की वास्तविक कहानी, हालांकि, फिल्म में दिखाए गए समय से काफी ज्यादा पुरानी है। पुरातत्व के अनुसार जिस खदान पर फिल्म केजीएफ को बनाया गया है उसका इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना का बताया जाता है।
डीएनए द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, फील्ड में हुई खुदाई लगभग 121 साल से ज्यादा पुरानी है और कहा जाता है कि इतने समय में यहां की खदान से लगभग 900 टन से ज्यादा का सोना निकल चुका है।बता दे यह कोलार गोल्ड फील्ड कर्नाटक राज्य के दक्षिणपूर्व क्षेत्र में है।RRR और बाहुबली से पहले इन फिल्मों को बनाकर भी साउथ इंडस्ट्री में धूम मचा चुके है एसएस राजमौली
ब्रिटिश सरकार के समय लेफ्टिनेंट जॉन वारेन द्वारा केजीएफ से जुड़ा एक लेख लिखा गया था, जिसमें उन्होंने साफ तौर से कहा था कि कि इसका इतिहास 1799 में शुरू हो जाता है जब टीपू सुल्तान को श्रीरंगपटना की लड़ाई में अंग्रेजों द्वारा उनकी जमीन पर मार दिया गया था। कुछ सालों के बाद ही यह पूरी भूमि मैसूर राज्य को दे डाली गई थी, पर अंग्रेजों ने कोलार की भूमि का सर्वेक्षण करने का अधिकार अपने पास ही सुरक्षित रख लिया था।
वारेन के लेख के अनुसार यह पता चलता है कि चोल साम्राज्य के दौरान लोग सोना निकालने के लिए हाथ से खदान की खुदाई किया करते थे । वारेन ने खुद बताया कि उन्होंने भी कई बार गांव वालों को कोलार में सोने की खुदाई का लालच दिया था, लेकिन सोना की अधिकतम मात्रा उनके पास ही जाती थी पर धीरे धीरे इस खदान से मिलने वाली सोने की मात्रा एक दम खत्म हो गई ज्यादा सोना निकलने के लालच में यहां पर अंग्रेजो सरकार द्वारा नई तकनीक भी विकसित की गई थी और उनको इस तकनीक की वजह से ज्यादा फायदा नहीं हुआ था बल्कि कई सारे मजदूरों की जान चली गई थी और अंत में थक कर ब्रिटिश सरकार ने इस खदान में खुदाई को बंद कर दिया था।
साल 1871 में, लेवली द्वारा वारेन के छोड़े हुए इस लेख को पढ़ने के बाद भी साल 1873 में खुदाई शुरू की थी और उस समय खदान को को पूरी तरह रोशन करने के लिए एक दम से मशालों और लालटेन का ही इस्तेमाल किया गया था। जब लालटेन की रोशनी काफी ज्यादा साबित नहीं हुई थी, इसलिए लवली ने सबसे पहले खदान में बिजली लाने की की व्यवस्था कर डाली थी।खूबसूरती के मामले में दीपिका को टक्कर देती है KGF फिल्म में रॉकी भाई की खूबसूरत प्रेमिका श्रीनिधि!!
एक जानी मानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार द्वारा सोने का ऐसा लालच दिया गया था कि केजीएफ पूरी तरह से सक्रिय बिजली वाला भारत का पहला क्षेत्र बना दिया गया था। साल 1902 तक, 95 प्रतिशत सोने का खनन इस तकनीक की मदद से सरकार द्वारा किया गया था। पूरी खदान में उस समय केवल 30,000 कर्मचारी ही कार्यरत थे। लेवेली का प्रयोग एक दम से सफल रहा था और खदानों से भारी मात्रा में सोने को निकाला जा रहा था।